नई एजुकेशन पॉलिसी में क्या है त्रिभाषा फॉर्मूला? क्या है इसका महत्व और कैसे होगा लागू?

नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 में त्रिभाषा फॉर्मूला एक बड़ा बदलाव है. यह नीति 1986 की शिक्षा नीति को हटाकर लागू की गई है. इसमें कहा गया है कि छात्रों को तीन भाषाएं सीखनी होंगी, जिनमें से कम से कम दो भारतीय भाषाएं होनी चाहिए. हालांकि, कुछ राज्यों, जैसे तमिलनाडु, ने इस फॉर्मूले का विरोध किया है क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे हिंदी जबरदस्ती थोपी जा सकती है.

इस फॉर्मूले के अनुसार, हर छात्र को तीन भाषाएं सीखनी होंगी, और इनमें से कम से कम दो भाषाएं भारत की होनी चाहिए. यह नियम सरकारी और निजी दोनों स्कूलों के लिए लागू होगा, लेकिन हर राज्य को यह तय करने की आज़ादी दी गई है कि वे कौन-सी भाषाएं चुनेंगे. इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों को बहुभाषी बनाना और भारत की एकता को मजबूत करना है.

क्या विदेशी भाषाएं भी सिखाई जाएंगी?

हां, नई शिक्षा नीति के अनुसार, छात्रों को भारतीय भाषाओं और अंग्रेज़ी के अलावा विदेशी भाषाएं सीखने का भी मौका मिलेगा. छठी कक्षा से बारहवीं कक्षा तक वे कोरियन, जापानी, फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश और दूसरी विदेशी भाषाएं भी सीख सकते हैं. इससे उन्हें दुनिया के अलग-अलग देशों की संस्कृति और वहां के लोगों को समझने में मदद मिलेगी. साथ ही, इससे उनके करियर के मौके भी बढ़ेंगे.

नई शिक्षा नीति क्या कहती है?

नीति में कहा गया है कि स्कूल में शुरू से ही इस फॉर्मूले को लागू किया जाएगा ताकि बच्चे छोटी उम्र से ही कई भाषाएं सीख सकें. इसमें यह भी साफ किया गया है कि किसी भी भाषा को ज़बरदस्ती नहीं थोपा जाएगा. राज्य, क्षेत्र और छात्र अपनी पसंद की भाषाएं चुन सकते हैं. अगर कोई छात्र चाहे, तो वह छठी या सातवीं कक्षा में अपनी चुनी हुई भाषा को बदल सकता है.

लेकिन यह ज़रूरी होगा कि माध्यमिक शिक्षा पूरी होने तक वह तीन भाषाएं अच्छे से सीख ले. इनमें से एक भाषा को साहित्यिक स्तर पर सीखना अनिवार्य होगा.

भाषा शिक्षकों की भर्ती पर ज़ोर

सरकार ने कहा है कि देशभर में भाषा शिक्षकों की बड़ी संख्या में भर्ती की जाएगी. इसमें खासकर संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं के शिक्षकों को प्राथमिकता दी जाएगी. इसके लिए विभिन्न राज्यों के बीच आपसी समझौते किए जाएंगे, जिससे ज़रूरत के हिसाब से शिक्षकों को नियुक्त किया जा सके.

नई शिक्षा नीति का त्रिभाषा फॉर्मूला छात्रों को कई भाषाएं सीखने का अवसर देता है. सरकार ने यह साफ किया है कि कोई भी भाषा अनिवार्य नहीं होगी और राज्यों को भाषा चुनने की पूरी आज़ादी होगी.

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