तेलंगाना में सीएम रेवंत रेड्डी ने राज्य के यूनिवर्सिटीज में पढ़ाए जा रहे कुछ पुराने और आज के समय से मेल न खाने वाले कोर्स को बंद करने की बात कही है. इसके साथ ही इन कोर्स को पढ़ाने वाले शिक्षकों को एडमिनिस्ट्रेटिव पदों पर ट्रांसफर किए जाने का सुझाव भी दिया गया है. इस फैसले को लेकर एकेडमिक कम्युनिटी में चर्चा तेज हो गई है.
सीएम का मानना है कि यूनिवर्सिटीज में ऐसे कोर्स चल रहे हैं जिनका आज के समय में न तो कोई खास उपयोग है और न ही उनके जरिए छात्रों को नौकरियां मिल पा रही हैं. कई छात्र भी इन कोर्स को उबाऊ मानते हैं और क्लास में हिस्सा नहीं लेते. ऐसे में सवाल उठता है कि अगर ये कोर्स छात्रों के भविष्य को मजबूत नहीं बना पा रहे हैं, तो उन्हें जारी रखने का क्या मतलब है?
किन विभागों पर सबसे पहले असर?
हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी से मिली जानकारी के अनुसार, सबसे ज्यादा असर सोशल साइंसेज और ह्यूमैनिटीज के विभागों पर पड़ सकता है. इन विभागों में फिलहाल पुराने सिलेबस पर ही पढ़ाई हो रही है जिसमें समय के साथ सिर्फ नाममात्र के बदलाव किए गए हैं.
खास तौर पर फिलॉसफी डिपार्टमेंट को सबसे पहले बंद किए जाने की चर्चा है. एक पूर्व वाइस-चांसलर ने बताया कि यह विषय कभी ‘ज्ञान की रानी’ कहा जाता था, लेकिन अब इसके जरिए छात्रों को 21वीं सदी के जरूरी स्किल्स और रोजगार के अवसर नहीं मिल पा रहे हैं.
पढ़ाई में भारतीय परंपराएं गायब
रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन विभागों में ज्यादातर पढ़ाई फॉरेन फिलॉसफीज और आइडियोलॉजीज पर आधारित होती है. भारतीय दर्शन और मूल ग्रंथों को लेकर छात्रों की समझ कम है, क्योंकि ज्यादातर मटेरियल का अध्ययन केवल अंग्रेजी अनुवादों के जरिए ही होता है. इससे छात्रों की ओरिजिनल थिंकिंग और क्रिएटिविटी पर असर पड़ता है.
क्या बंद होंगे पूरे विभाग?
अगर फिलॉसफी जैसे विभागों में काम करने वाले एक-दो शिक्षकों को एडमिनिस्ट्रेटिव पोजीशन पर भेज दिया गया, तो पूरा विभाग ही बंद हो सकता है. इसके चलते शिक्षकों और छात्रों में कन्फ्यूजन है.
दूसरी यूनिवर्सिटी से तुलना
सेंट्रल यूनिवर्सिटीज और IIT जैसे संस्थानों में फिलॉसफी और सोशल टॉपिक्स को मॉडर्न प्रॉब्लम्स से जोड़ा गया है और पढ़ाई को इंटरडिसिप्लिनरी बनाया गया है. लेकिन राज्य की ट्रेडिशनल यूनिवर्सिटीज अभी भी पुराने ढर्रे पर चल रही हैं.
तेलंगाना सरकार की यह पहल उच्च शिक्षा को समय के साथ जोड़ने की दिशा में बड़ा कदम हो सकता है. जरूरत इस बात की है कि बदलाव इस तरह हो जिससे शिक्षा की गुणवत्ता बनी रहे और छात्रों का भविष्य भी सुरक्षित रहे.
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