भारत के स्कूलों में स्टूडेंट को हाई लेवल एजुकेशन मिलती है, खासकर मैथ्स जैसे सब्जेक्ट में. लेकिन जब बात कॉलेज या यूनिवर्सिटी लेवल की पढ़ाई की आती है, तो अमेरिका जैसे देशों में एजुकेशन सिस्टम अधिक इंटरएक्टिव और प्रैक्टिकल होती है.
अमेरिका के नेशनल साइंस फाउंडेशन में प्रोग्राम डायरेक्टर डॉ. दीप मेधी का मानना है कि अमेरिका की यूनिवर्सिटीज में टीचर और स्टूडेंट के बीच बातचीत और समझ बहुत अच्छी होती है, जो सीखने में मदद करती है.
कॉम्पिटिशन के कारण विदेश की ओर रुख
डॉ. मेधी बताते हैं कि भारत में कॉम्पिटिशन बहुत ज्यादा है. IIT और NIT जैसे टॉप इंस्टीट्यूशन्स में दाखिला लेना बहुत कठिन होता है. इसलिए जिन स्टूडेंट को यहां मौका नहीं मिल पाता, वे विदेश जाने का रास्ता चुनते हैं. इसके अलावा भारत में अब एजुकेशन लोन लेना भी पहले से आसान हो गया है, जिससे स्टूडेंट को पढ़ाई के लिए पैसे की चिंता कम होती है.
अमेरिका में पढ़ाई का तरीका और सुविधाएं बेहतर
अमेरिका की यूनिवर्सिटीज में लैब्स और रिसर्च के लिए बहुत अच्छे रिसोर्सेज होते हैं. वहां तकनीकी सब्जेक्ट में पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट को सही मायनों में हाथों से काम करने और सीखने का मौका मिलता है. साथ ही अमेरिका का एजुकेशन सिस्टम काफी लचीली होता है, जिससे छात्र अपने अनुसार कोर्स और करियर चुन सकते हैं.
अमेरिकी स्टूडेंट में घट रही रिसर्च की रुचि
हाल के वर्षों में यह देखा गया है कि अमेरिका में टेक्निकल सब्जेक्टों में पोस्टग्रेजुएट और पीएचडी स्तर की पढ़ाई में स्टूडेंट की रुचि घट रही है. यह समस्या सिर्फ अमेरिका में ही नहीं, बल्कि जर्मनी और इंग्लैंड जैसे विकसित देशों में भी देखी जा रही है. एक वजह यह हो सकती है कि ग्रेजुएट की पढ़ाई के बाद ही स्टूडेंट को अच्छी नौकरियां मिल जाती हैं, जिससे वे आगे पढ़ने की जरूरत नहीं समझते.
यूनिवर्सिटीज पर भी असर
स्टूडेंट की इस सोच का असर वहां की यूनिवर्सिटीज पर भी पड़ा है. कई प्रमुख इंस्टीट्यूट अब अपने प्रोफेसरों को इंडस्ट्री में पार्ट-टाइम काम करने की छूट दे रहे हैं ताकि वे खुद को प्रैक्टिकल रूप से भी अपडेट रख सकें.
मैथमेटिक में भारतीय स्टूडेंट की मजबूत पकड़
डॉ. मेधी के अनुसार, भारतीय स्टूडेंट की मैथ्स की समझ अमेरिकी स्टूडेंट से अधिक मजबूत होती है. भारत में मैथ्स पर ज्यादा जोर दिया जाता है, जो हायर एजुकेशन और रिसर्च के समय बहुत काम आता है. यही कारण है कि भारतीय स्टूडेंट अमेरिका में जाकर भी टेक्निकल एजुकेशन में अच्छा प्रदर्शन करते हैं.
इस तरह देखा जाए तो भारत में स्कूल एजुकेशन भले ही अच्छी हो, लेकिन हायर एजुकेशन और रिसर्च के बेहतर माहौल की तलाश में भारतीय स्टूडेंट अमेरिका जैसे देशों में एजुकेशन को प्रायोरिटी देते हैं.
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