पहलगाम टेरर अटैक के बाद भारत की तैयारी देख पाकिस्तान डर गया है. भारत की तरफ से युद्ध के खतरे को देखते हुए पाकिस्तान ने खैबर पख्तूनख्वाह के 29 शहरों में सायरन लगवाने के आदेश दिए हैं. पाक को डर है कि कहीं इंडियन एयरफोर्स उसके आतंकियों की फेवरेट डेस्टिनेशन को नेस्तनाबूत ना कर दे.
दरअसल युद्ध या हमले में सायरन और ब्लैकआउट प्रोटोकॉल फॉलो किया जाता है. इसीलिए पाकिस्तान ने पेशावार एबटाबाद और स्वात जैसे शहरों में लोगों को अलर्ट करने के लिए सायरन लगाने के आदेश दिए हैं. पाकिस्तान को डर है कि कहीं पिछली बार की तरह इस बार भी भारत एयर स्ट्राइक न कर दे.यह डर इसलिए भी है, क्योंकि 2019 में भारत ने जिस बालाकोट में स्ट्राइक की थी वह खैबर पख्तूनख्वाह का ही इलाका है. इस इलाके में कई आतंकी संगठनों के भी एक्टिव रहने की खबर मिलती है.
जंग के हालात में क्या होता है प्रोटोकॉल
युद्ध के समय में सायरन एक वॉर्निंग अलर्ट की तरह होता है.दरअसल ये सायरन सड़कों के किनारे और ऊंचे खम्भों पर लगाए जाते हैं और उन्हें आउटडोर वॉर्निंग सायरन कहते हैं. इनमें दो खास तरह की ध्वनि होती हैं-सिंगल टोन और वेविंग टोन. सिंगल टोन यानी लगातार एक सी आवाज और वेविंग टोन यानी, उस ध्वनि में उतार चढ़ाव होता है.सिंगल टोन का इस्तेमाल प्राकृतिक आपदा जैसे तूफान, भूंकप और बवंडर के वक्त किया जाता है, जबकि वेविंग टोन वाला सायरन युद्ध को दौरान या एयरस्ट्राइक से अलर्ट करने में बजाया जाता है.
वेविंग टोन यानी खतरा सिर पर
जंग की सूरत में जब वेविंग टोन वाला सायरन बजता है तो उसका मतलब होता है कि खतरा सिर पर है.अपनी जान बचाने के लिए तुरंत सुरक्षित ठिकाने पर जाएं.इसके अलावा जंग के दौरान एक ब्लैक आउट प्रोटोकॉल भी होता है. इन दोनों के बारे में आपको बताते हैं. असल में सायरन और ब्लैकआउट प्रोटोकॉल सिविल डिफेंस प्रोटोकॉल का हिस्सा है.
सायरन अलर्ट करने का माध्यम
- तेज़ आवाज़ में बजने वाले सायरन लोगों को संकेत देते हैं कि वे तुरंत सुरक्षित स्थान जैसे बंकर या शेल्टर की ओर चले जाएं.
- युद्ध के समय ब्लैकआउट प्रोटोकॉल के तहत सभी लाइटें बंद कर दी जाती हैं ताकि दुश्मन के ड्रोन या हवाई जहाज रात में शहरों को आसानी से निशाना न बना सकें.
- ऐसे दौर में नागरिकों को स्कूलों, दफ्तरों और सामुदायिक केंद्रों पर ड्रिल कराई जाती है, ताकि वे जान सकें कि सायरन सुनते ही कहाँ भागना है, क्या ले जाना है, और किन गलियों या सीढ़ियों से जाना है.
- सायरन के साथ-साथ रेडियो, टीवी, SMS या मोबाइल ऐप के ज़रिए भी अलर्ट भेजे जाते हैं, जिनमें बताया जाता है कि खतरा कितना है, कहाँ जाना है, और कितनी देर छिपे रहना है.
- युद्ध के माहौल में डर और अफरा-तफरी से बचाने के लिए लोगों को मानसिक रूप से तैयार किया जाता है, ताकि वे घबराए नहीं और जरूरी निर्देशों का पालन करें.
सायरन और ब्लैकआउट की जरूरत क्यों?
सायरन और ब्लैकआउट प्रोटोकॉल युद्ध के समय में बहुत प्रभावी होता है. दरअसल ड्रोन और मिसाइलों की गति तेज़ तो जरूर होती है लेकिन इस दौर में भी अलर्ट सिस्टम चुस्त हो तो कुछ सेकंड या कुछ मिनट का समय मिल सकता है, जिससे कई लोगों की जान बचाई जा सकती है. ब्लैकआउट अब भी कारगर हो सकता है, क्योंकि स्मार्ट बम और विजुअल टारगेटिंग वाले ड्रोन को रोशनी से मदद मिलती है। और ब्लैकआउट की सूरत में उन्हें वो अपने टारगेट को मिस कर सकते हैं. सामूहिक अलर्ट सिस्टम जैसे इज़राइल का रेड कोड लोगों की जान बचाने में आज भी काफी असरदार साबित होता है. Red Code Alert System दुनिया के सबसे तेज़ और आधुनिक अलर्ट सिस्टम में से एक है, जो मिसाइल या रॉकेट हमले के समय सायरन बजाता है, मोबाइल पर Push Alerts और SMS भेजता है, और नागरिकों को सिर्फ़ 15 से 90 सेकंड के भीतर चेतावनी देकर जान बचाने में मदद करता है.