पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता की रहने वाली 17 साल की छात्रा सृजनी नाम की छात्रा ने अपने एकेडमिक अचीवमेंट से तो पूरे देश में नाम कमाया ही है साथ ही उन्होंने असली मायने में इंसानियत की मिसाल भी पेश की है. उनके विचारों और मूल्यों ने सभी का ध्यान आकर्षित किया है. ‘द फ्यूचर फाउंडेशन’ स्कूल की छात्रा सृजनी ने ISC 12वीं बोर्ड परीक्षा में 100% मार्क्स हासिल किए हैं. सृजनी अपने किसी भी डॉक्यूमेंट में अपने सरनेम का इस्तेमाल नहीं करती हैं, उनका मानना है कि इंसान की पहचान जाति, धर्म या सरनेम से नहीं होती है बल्कि उसके मूल्यों और इंसानियत से होती है.
सृजनी वैचारिक रूप से जाति, धर्म और वर्ग जैसे भेद करने वाले कारकों को नहीं मानती हैं. वह समानता में विश्वास करती हैं और कहती हैं कि जब तक इंसान इन सब चीजों से ऊपर नहीं उठेंगे तब तक समाज में समानता नहीं आ सकती. टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत के दौरान सृजनी ने कहा कि वह हर तरह की असमानता के खिलाफ हैं. वह चाहे सामाजिक हो, आर्थिक हो या धार्मिक.
परिवार से मिली यह सोच
सृजनी को यह सोच अपने परिवार से विरासत में मिली है. जी हां, उनकी मां गोपा मुखर्जी गुरुदास कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं और पिता देबाशीष गोस्वामी एक प्रसिद्ध गणितज्ञ हैं और शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित हैं. उनके माता-पिता ने बच्चों के जन्म प्रमाणपत्र में जानबूझकर कोई उपनाम नहीं लिखा. उनकी सोच थी कि उनके बच्चे बिना किसी भेदभाव के समाज में आगे बढ़ें.
स्कूल से की रिक्वेस्ट
परीक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन करते वक्त सृजनी ने ऑफिशियली स्कूल से रिक्वेस्ट की थी कि उनके नाम के साथ कोई उपनाम न जोड़ा जाए. स्कूल के प्रिंसिपल रंजन मित्तर ने भी इस फैसले का समर्थन किया और कहा कि जब तक कानून का पालन हो रहा है तो हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं.
सृजनी सिर्फ विचारों तक सीमित नहीं हैं वे सामाजिक आंदोलनों में भी सक्रिय हैं. अगस्त 2024 में एक महिला डॉक्टर के साथ हुई दुखद घटना के विरोध में हुए “रिक्लेम द नाइट” आंदोलन में उन्होंने और उनके परिवार ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया.