अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की कुलपति नाईमा खातून की नियुक्ति पर सवाल उठाने वाली याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है. ऐसे में प्रोफेसर नाईमा खातून एमएमयू के 100 साल के सफर में पहली महिला वीसी के तौर पर काम करती रहेंगीं. उनसे पहले विवि में आज तक कोई महिला कुलपति नहीं रही है.
एएमयू में बीते दिनों कार्यवाहक कुलपति गुलरेज की पत्नी प्रोफेसर नाईमा खातून को वीसी बनाया गया था. इस पर प्रोफेसर मुजाहिद बेग की ओर से एक याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें ये आरोप लगाया गया था कि कुलपति की नियुक्ति के लिए नियमों को ताक पर रखा गया. मामले में 9 अप्रैल को सुनवाई पूरी करने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया था.
कौन हैं प्रोफेसर नाईमा खातून
प्रोफेसर नाईमा खातून को अध्यापक कार्य का 36 साल से ज्यादा का अनुभव है. उनका जनम 1961 में ओडिशा के जाजपुर जिले में हुआ था. 2014 में वह एमएमयू के ही महिला कॉलेज की प्राचार्य बनाई गईं थीं. इससे पहले वह पॉलिटिकल सायकोलॉजी पढ़ाती थीं. उन्होंने इस विषय में पीएचडी भी की है. खास बात ये है कि प्रोफेसर नाईमा खातून ने एएमयू के ही वीमेंस कॉलेज से पढ़ाई की है और यहां स्टूडेंट पॉलिटिक्स में भी एक्टिव रहीं हैं. वह पॉलिटिकल सायकोलॉजी पर कई देशों में व्याख्यान भी दे चुकी हैं. 1988 से वह लगातार अध्यापन में सक्रिय हैं.
क्या था पूरा मामला
दरअसल प्रोफेसर मुजाहिद बेग की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रोफेसर नाईमा खातून की नियुक्ति पर सवाल उठाए गए थे. उनका आरोप था कि जिस कार्यपरिषद की बैठक में प्रोफेसर नाईमा की वीसी के तौर पर नियुक्ति पर मुहर लगी उस बैठक की अध्यक्षता उनके पति कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर मोहम्मद गुलरेज कर रहे थे, जिससे नियुक्ति प्रक्रिया प्रभावित हुई है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या कहा?
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस डी रमेश की पीठ ने याचिकाकर्ता और सरकार की दलीलों को सुनने के बाद 9 अप्रैल को ही फैसला सुरक्षित कर लिया था. खंडपीठ ने कहा कि ये सही है कि प्रोफेसर गुलरेज ने कार्यकारी परिषद की बैठक की अध्यक्षता की जो कि उन्हें नहीं करनी चाहिए थी, लेकिन इससे ये नहीं माना जा सकता कि नियुक्ति प्रक्रिया प्रभावित हुई है.कार्यकारी परिषद की अनुशंसात्मक भूमिका है, इसीलिए कोर्ट ये मानती है कि चयन प्रक्रिया प्रभावित नहीं हुई है.