केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के 11 साल पूरे हो गए हैं. इन 11 साल में शिक्षा के क्षेत्र में कई बदलाव देखने को मिल रहे हैं. स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक में कई ऐसे परिवर्तन हुए हैं, जो रोजगार के अवसर, कौशल और सशक्तीकरण की दिशा में ले जाएंगे. इनमें सबसे अहम योगदान होगा राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का. आइए जान लेते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में अब तक क्या-क्या बदला?
नई शिक्षा नीति-2020 की घोषणा के साथ ही केंद्र सरकार ने मानव संसाधन मंत्रालय का नाम बदल दिया और इसे नया नाम शिक्षा मंत्रालय दिया गया है. इस नीति के तहत साल 2030 तक स्कूली शिक्षा में पूर्व-विद्यालय से लेकर माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा के सार्वभौमीकरण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. नई शिक्षा नीति में 5 + 3 + 3 + 4 वाले शैक्षणिक संरचना का प्रस्ताव है. इसमें तीन से 18 साल तक की आयु वाले बच्चों को शामिल किया जाएगा. इसमें पांच साल का फाउंडेशनल स्टेज है, जिसमें 3 साल का प्री-प्राइमरी स्कूल और ग्रेड 1, 2 शामिल हैं. इसके अलावा तीन साल का प्रीपेट्रेटरी स्टेज, तीन वर्ष का मिडिल स्टेज यानी ग्रेड 6, 7, 8 और 4 वर्ष का हाई स्टेज यानी ग्रेड 9, 10, 11, 12 शामिल हैं.
नई शिक्षा नीति में क्या?
इस नीति के अनुसार, कला और विज्ञान, व्यावसायिक और शैक्षणिक विषयों, पाठ्यक्रम और पाठ्येतर गतिविधियों के बीच बहुत अंतर नहीं होगा. कक्षा छह से ही पाठ्यक्रम में व्यावसायिक शिक्षा को भी शामिल करने का प्रावधान है, जिसमें इंटर्नशिप की भी व्यवस्था की जाएगी. इसके अलावा उच्च शिक्षण संस्थानों में सकल नामांकन अनुपात को साल 2018 के 26.3 फीसदी से बढ़ाकर 50 फीसदी तक करने का लक्ष्य है. इसके लिए देश के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ने का प्रावधान है.
पिछले 11 साल में सबसे बड़ा बदलाव
एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज के प्रेसिडेंट और छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय (सीएसजेएमयू), कानपुर के कुलपति प्रोफेसर विनय कुमार पाठक का कहना है कि बीते 11 साल में शिक्षा के क्षेत्र में जो सबसे महत्वपूर्ण बदलाव आया है, वह राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ही है. इसके तहत प्राइमरी शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक में बदलाव का जो ढांचा तैयार किया गया है, वह भारतीय ज्ञान की परम्परा की जड़ों से जुड़ता है.
संस्थाओं के एकीकरण से मिलेगा लाभ
प्रोफेसर पाठक का कहना है कि इस शिक्षा नीति के तहत यूजीसी-एआईसीटीई जैसी संस्थाओं को मिलाकर एक करने का खाका तैयार किया गया है. इससे काफी फायदा होगा. नई शिक्षा नीति के तहत देश भर के उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए एकल नियामक यानी भारतीय उच्च शिक्षा परिषद की स्थापना की जाएगी. इसके कामों को प्रभावी तरीके से संपन्न कराने के लिए चार निकाय राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामकीय परिषद, सामान्य शिक्षा परिषद, राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद और उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद होंगे. इसके अलावा शोध को बढ़ावा देने के लिए अलग से संस्था बनाना वास्तव में मील का पत्थर साबित होगा. नए आईआईटी और आईआईएम शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाएंगे.
विश्वविद्यालयों की संख्या तेजी से बढ़ी
प्रोफेसर विनय पाठक ने बताया कि देश में इन 11 सालों के दौरान विश्वविद्यालयों की संख्या तेजी से बढ़ी है. पहले देश भर में जहां पांच सौ से अधिक विश्वविद्यालय थे, वहीं अब इनकी संख्या बढ़कर 1300 के पार तक पहुंच चुकी है. इसके साथ ही दुनिया के कई रैंकिंग सिस्टम में भी भारत ने अपनी जगह बनाई है. हालांकि, उनका कहना है कि फिर भी इस क्षेत्र में अभी बहुत कुछ होना बाकी है. वैसे बीते 11 सालों में बहुत कुछ ऐसा हुआ जो आने वाले दिनों में देश के सामने स्पष्ट होगा और भारत शिक्षा के क्षेत्र में दुनिया के नक्शे पर स्पष्ट रूप से दिखाई देगा.
21वीं शताब्दी की पहली नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति
कई विश्वविद्यालयों के कुलपति रहे शिक्षाविद प्रोफेसर अशोक कुमार का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के पिछले 11 सालों के कार्यकाल में भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में 21वीं शताब्दी की पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 लागू की गई है. इससे शिक्षा के क्षेत्र में संरचनात्मक और नीतिगत स्तर पर कई बड़े बदलाव देखने को मिले हैं, जिनका उद्देश्य शिक्षा को अधिक सुलभ, समावेशी, गुणवत्तापूर्ण और भविष्य की जरूरतों के अनुरूप बनाना है. हालांकि, उनका यह भी कहना है कि इन नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन और जमीनी स्तर पर उनके प्रभावों का मूल्यांकन करना अब भी एक प्रश्न चिह्न है. यानी इस दिशा में अभी बहुत काम किया जाना बाकी है.
कॉलेजों की संख्या में बढ़ोतरी
साल 2014-15 में जब पहली बार केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार बनी थी तब देश में कॉलेजों की कुल संख्या 38,498 थी. यह मई 2025 तक बढ़कर 51959 तक पहुंच गई है. इसी अवधि में विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़कर 1,334 हो गई है. देशभर में वर्तमान में 10 हजार से अधिक अटल टिंकरिंग लैब स्थापित हो चुके हैं. अगले पांच सालों में इन लैब की संख्या 50 हजार करने का लक्ष्य है.
आईआईटी की संख्या में हुई वृद्धि
साल 2014 से पहले देश में 16 आईआईटी थे. इनकी संख्या साल 2024 में बढ़कर 23 हो गई थी. प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया योजना (पीएम श्री) के तहत देश भर में 14,502 स्कूलों को विकसित किया जा रहा है. इसके अलावा इसी कार्यकाल के दौरान देश में पहला फॉरेंसिक विश्वविद्यालय, पहला रेल और परिवहन विश्वविद्यालय, उत्तर-पूर्व में पहला अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), सिलवासा में पहला मेडिकल कॉलेज और लद्दाख में पहले केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना भी की गई है.
मोदी सरकार के कार्यकाल में मेडिकल कॉलेजों की संख्या भी बढ़कर दोगुनी हो चुकी है. साल 2014 में मेडिकल कॉलेजों की संख्या केवल 387 थी, जो साल 2025 में बढ़कर 780 तक हो गई. वहीं, एमबीबीएस की सीटों की संख्या 51348 थी, जो साल 2024 में 1.18 लाख हो चुकी थी.
स्कूलों के बुनियादी ढांचे में सुधार
मोदी सरकार के कार्यकाल में स्कूलों के बुनियादी ढांचे में काफी सुधार हुआ है. पहले स्कूलों में बिजली की उपलब्धता 53 प्रतिशत थी, जो अब बढ़कर 91.8 प्रतिशत तक पहुंच गई है. कंप्यूटर तक बच्चों की पहुंच 24.1 से बढ़कर 57.2 प्रतिशत तक और इंटरनेट सुविधा 7.3 प्रतिशत से 53.9 प्रतिशत हो चुकी है. वहीं, स्कूलों में पीने के पानी की उपलब्धता 83.2 से बढ़कर 98.3 प्रतिशत, हाथ धोने की सुविधा 43.1 फीसदी से बढ़कर 94.7 फीसदी हो चुकी है. इसके अलावा सरकार की ओर से हर बच्चे पर किए जाने वाले खर्च में भी वृद्धि हुई है. 2013-14 में यह खर्च प्रति बच्चा 10,780 रुपये था जो 130 प्रतिशत बढ़कर साल 2021-22 में ही 25,043 रुपये पहुंच चुका था.