Special Child Admission : दिल्ली के 12 स्कूलों में कराएं दिव्यांग बच्चों का दाखिला,5 जुलाई है आवेदन की अंतिम तारीख

दिव्यांग बच्चों के लिए दिल्ली सरकार के स्कूलों में दाखिला की प्रक्रिया शुरू हुई है. दिल्ली सरकार ने 12 स्पेशल स्कूलों में दिव्यांग बच्चों को दाखिला देने के लिए फिर से आवेदन प्रक्रिया शुरू की है. 20 जून से ये आवेदन प्रक्रिया शुरू हुई है, जिसके तहत ऐसे अभिभावक जिनके बच्चे दिव्यांग श्रेणी में है, वह अपने बच्चों को दिल्ली सरकार के 12 विशेष स्कूलों में दाखिला दिलाने के लिए 5 जुलाई तक आवदेन कर सकते हैं. ये स्कूल विशेष तौर पर दिव्यांग बच्चों को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हैं और सामान्य स्कूलों से अलग हैं.

जानें क्या है एडमिशन प्रोसेस

  1. नर्सरी से लेकर 12वीं तक की खाली सीटों पर दाखिले की प्रक्रिया 5 जुलाई तक चलेगी.
  2. यह प्रक्रिया ऑनलाइन ड्रॉ के माध्यम से पूरी की जाएगी, ताकि पारदर्शिता बनी रहे और हर पात्र बच्चे को मौका मिल सके.
  3. ऑनलाइन ड्रॉ के बाद, डॉक्यूमेंट्स वेरिफिकेशन और एडमिशन की प्रक्रिया 7 से 10 जुलाई के बीच होगी.
  4. इसके बाद, 17 जुलाई को छात्रों को स्कूल अलॉट किए जाएंगे और दूसरी आवश्यक प्रक्रियाएं पूरी की जाएंगी.

इन जगहों पर हैं विशेष स्कूल, इतनी हैं सीटें

  • इन स्कूलों में विभिन्न विषयों पर फोकस किया गया है. दिल्ली गेट, राजेंद्र नगर, त्यागराज शासकीय विद्यालय, मयूर विहार फेज 1 (दो स्कूल), द्वारका सेक्टर 5, रोहिणी सेक्टर 11, जाफराबाद, मादीपुर, जनकपुरी, कालकाजी, रोहिणी सेक्टर 8 कई स्कूलों में सीटें खाली हैं.
  • इसके अलावा नगर निगम सीनियर सेकेंडरी स्कूल फिरोजशाह कोटला में लड़कों के लिए 50 और लड़कियों (बॉयज और गर्ल्स) के लिए 37 सीटें खाली हैं.
  • इसी तरह भोजपुर बॉर्डर वाली स्कूल ऑफ एक्सीलेंस में क्लास 1 से 8 तक की 46 सीटें खाली हैं.
  • इन सभी स्कूलों में स्टूडेंट्स को एडमिशन के चार मौके मिलेंगे. पूरी लिस्ट शिक्षा निदेशालय की वेबसाइट edudel.nic.in पर देखी जा सकती है.

क्या होते हैं स्पेशल स्कूल

स्पेशल स्कूल विशेष शिक्षा की जरूरतों (CWSN) वाले बच्चों या दिव्यांग बच्चों (CWD) के लिए बने संस्थान होते हैं, जिन बच्चों की दिव्यांगता हल्की से मध्यम होती है, उन्हें मुख्यधारा के स्कूलों में पढ़ाया जाता है, मध्यम से गंभीर दिव्यांगता वाले बच्चे स्पेशल स्कूलों में जाते हैं. इन स्कूलों को विशेष तौर पर ऐसे बच्चों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया जाता है तो वहीं शिक्षकों की तैनाती भी अलग से होती है, जो स्पेशल एजुकेटर कहलाते हैं.

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