सोशल मीडिया पर अक्सर ऐसे वीडियो वायरल हो जाते हैं, जिनमें स्कूल में कोई बच्चा झाड़ू लगाता या टॉयलेट साफ करता दिखता है. भारत में ऐसे नजारे देखकर लोग तुरंत शिक्षक पर कार्रवाई की मांग करने लगते हैं, लेकिन क्या जानते हैं कि जापान में यही काम पढ़ाई का हिस्सा है?जापान के स्कूलों में बच्चों से सफाई करवाना न सजा है, न मजबूरी, बल्कि एक परंपरा है, जिसे तोबन कात्सुदो कहते हैं. यहां बच्चे रोज झाड़ू लगाते हैं, बेंच साफ करते हैं और टॉयलेट तक धोते हैं. इसका मकसद साफ है, बचपन से जिम्मेदारी, अनुशासन और सम्मान का भाव सिखाना.
सिखाया जाता है स्वच्छता का मंत्र
जापानी संस्कृति में स्वच्छता पर बहुत जोर दिया जाता है. यहां सिर्फ शारीरिक ही नहीं, बल्कि नैतिक और आध्यात्मिक रूप से भी मजबूत बनाया जाता है. शिंटो धर्म, जो जापान के मूल धर्मों में से एक है, स्वच्छता को शुद्धता का एक रूप मानता है. यह सिर्फ गंदगी हटाना नहीं, बल्कि मन और आत्मा को भी शुद्ध करने जैसा है. यही वजह है कि जापान में हर जगह सफाई का खास ध्यान रखा जाता है.
स्कूलों में नहीं होते सफाईकर्मी
जापान के कई स्कूलों में सफाईकर्मी होते ही नहीं हैं. ऐसे में शिक्षक और छात्र कम से कम दिन में एक बार साथ मिलकर काम करते हैं, जिससे उनमें टीम वर्क और आपसी सम्मान की भावना बढ़ती है. कल्पना कीजिए एक शिक्षक और छात्र मिलकर शौचालय साफ कर रहे हैं. यह सिर्फ गंदगी हटाना नहीं, बल्कि एक-दूसरे के प्रति सम्मान और सहयोग की भावना को दर्शाता है. इससे बच्चों में यह समझ विकसित होती है कि हर काम महत्वपूर्ण होता है और कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता.
जीवन कौशल और चरित्र निर्माण
यह बच्चों को समय प्रबंधन, सहयोग, विनम्रता और धैर्य जैसे जीवन कौशल सिखाती है. वे छोटे-छोटे काम करके भी कड़ी मेहनत और आत्म-सम्मान का महत्व सीखते हैं. जब बच्चे एक साथ मिलकर सफाई करते हैं तो वे सीखते हैं कि कैसे एक-दूसरे का साथ देना है, कैसे काम को बांटना है और कैसे एक लक्ष्य को पाने के लिए मिलकर प्रयास करना है. यह उन्हें भविष्य में किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार करता है, जहां टीम वर्क और सहयोग की हमेशा जरूरत होती है.
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