जम्मू-कश्मीर के अभ्यर्थियों को एक बड़ी राहत देते हुए, सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (कैट), जम्मू पीठ ने जम्मू-कश्मीर राजस्व (अधीनस्थ) सेवा भर्ती नियम, 2009 के उस प्रावधान के एनफोर्समेंट पर रोक लगा दी है, जिसमें नायब तहसीलदार के पद के लिए ‘उर्दू के ज्ञान के साथ स्नातक’ को अनिवार्य योग्यता बताया गया था.
ट्रिब्यूनल के सदस्य (ए) राम मोहन जौहरी और सदस्य (जे) राजिंदर सिंह डोगरा की पीठ के आदेश के अनुसार, वरिष्ठ अधिवक्ता अभिनव शर्मा और अधिवक्ता अभिराश शर्मा द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए आवेदकों ने समानता और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए उर्दू भाषा की शर्त को ‘भारत के संविधान के खिलाफ’ बताते हुए चुनौती दी.
पांच भाषाओं को मान्यता
आवेदकों ने तर्क दिया कि 2009 के नियमों ने जम्मू-कश्मीर राजभाषा अधिनियम, 2020 के तहत मान्यता प्राप्त पांच आधिकारिक भाषाओं, अर्थात् उर्दू, हिंदी, अंग्रेजी, डोगरी और कश्मीरी, में से एक या अधिक में पारंगत, अन्यथा पात्र उम्मीदवारों को अनुचित रूप से बाहर कर दिया. ट्रिब्यूनल ने कहा कि केवल उर्दू की आवश्यकता भेदभावपूर्ण प्रतीत होती है, विशेष रूप से 2020 के उस कानून के मद्देनजर जिसने केंद्र शासित प्रदेश में कई भाषाओं को आधिकारिक दर्जा प्रदान किया है.
एसएसआरबी ने विज्ञापन को चुनौती
आवेदकों ने जम्मू-कश्मीर सेवा चयन भर्ती बोर्ड (एसएसआरबी) के विज्ञापन अधिसूचना संख्या 05/2025, 9 जुलाई को भी चुनौती दी, जिसमें पात्रता के लिए उर्दू ज्ञान को अनिवार्य बताया गया था. ट्रिब्यूनल ने निर्देश दिया कि 2009 के भर्ती नियमों में केवल उर्दू के प्रावधान के संचालन पर रोक लगा दी गई है.
13 अगस्त को होगी अगली सुनवाई
एसएसआरबी को निर्देश दिया गया है कि वह उन उम्मीदवारों के आवेदन स्वीकार करे, जिन्हें 2020 अधिनियम के अनुसार पांचों आधिकारिक भाषाओं में से किसी एक का ज्ञान हो. ट्रिब्यूनल ने सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) और अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर चार हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. मामले की अगली सुनवाई 13 अगस्त को होगी.