भारतीय सेना अब निगरानी और सरहदी ऑपरेशंस के लिए विदेशी उपकरणों पर निर्भर नहीं रहेगी. IIT रोपड़ के वैज्ञानिक और छात्र मिलकर ऐसे ड्रोन बना रहे हैं, जो हमारी सेना के लिए गेम चेंजर साबित हो सकते हैं. इसके साथ ही ये प्रोजेक्ट्स यहां के स्टूडेंट्स के लिए रिसर्च का विकल्प भी बन रहा है.IIT रोपड़ के ‘सेंटर ऑफ ड्रोन्स एंड ऑटोनॉमस सिस्टम्स (CoDRAS)’ में एक टीम दिन-रात इसी काम में लगी है. ये टीम ऐसे ऑटोनॉमस ड्रोन तैयार कर रही है, जो युद्ध वाले इलाकों में आसानी से उतर सकें और तुरंत किसी भी जगह की सटीक जानकारी दे सकें. यानी, पहाड़ों, घने जंगलों या रेगिस्तानी इलाकों में जहां इंसानों का पहुंचना मुश्किल है, वहां ये ड्रोन हमारे जवानों का काम आसान कर देंगे.
Indigenous Drone Development : क्या-क्या बन रहा है खास?
IIT की टीम सिर्फ ड्रोन नहीं बना रही, बल्कि इनके लिए अगली पीढ़ी के उड़ान एल्गोरिदम, ड्रोन को खुद से रास्ता दिखाने वाली आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और सुरक्षित कम्युनिकेशन नेटवर्क भी डेवलप कर रही है. इसका सीधा फायदा यह होगा कि हमारी सेना बिना किसी डर के निगरानी कर पाएगी और संवेदनशील जानकारी देश से बाहर नहीं जाएगी.
Border Operations Technology :सेना की डिमांड पर दो बड़े प्रोजेक्ट
फिलहाल, IIT रोपड़ में दो बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं, और मजेदार बात यह है कि इन्हें भारतीय सेना के कहने पर ही शुरू किया गया है. पहला प्रोजेक्ट है युद्ध क्षेत्र में ड्रोन की ऑटोमैटिक लैंडिंग. किसी उबड़-खाबड़ या खतरनाक जगह पर ड्रोन को सही सलामत उतारना बड़ी चुनौती है.
दूसरा प्रोजेक्ट है रियल-टाइम जियो-लोकेशन और हवाई निगरानी. इसमें सिर्फ नक्शा बनाना ही शामिल नहीं है. सीनियर रिसर्च फेलो शिवम कैंथ और रिसर्च इंटर्न कंवरवीर सिंह की टीम ऐसे सिस्टम बना रही है, जो ड्रोन को चीजों की पहचान करने, हलचल पकड़ने और यहां तक कि घनी झाड़ियों में भी जमीन पर हो रहे बदलावों को ट्रैक करने में मदद करेगा.
AI for Drones : पूरी तरह से देसी ड्रोन का सपना होगा पूरा
IIT रोपड़ ने एक प्राइवेट ड्रोन कंपनी के साथ एक समझौता (MoU) भी किया है. दोनों मिलकर पूरी तरह से देसी ड्रोन बनाएंगे. मतलब हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और उसे चलाने वाली इंटेलिजेंस, सब कुछ भारत में ही बनेगा. इससे यह पक्का होगा कि ड्रोन बनाने से लेकर उन्हें इस्तेमाल करने तक, पूरी चेन हमारे अपने कंट्रोल में रहेगी.
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