प्रतिष्ठित ग्लोबल स्टूडेंट प्राइज 2025 के लिए टॉप 50 में भारत के 5 छात्रों को चुना गया है. इस साल 148 देशों में से लगभग 11,000 नॉमिनेशन आए थे, जिनमें से इन पांच छात्रों को चुना गया है. यह पुरस्कार उन्हें दिया जाता है जो पढ़ाई के साथ-साथ दुनिया में बदलाव के लिए भी काम कर रहे हैं. विनर को 100,000 अमेरिकी डॉलर (लगभग 80 लाख रुपये) मिलेंगे. ये पांचों छात्र बिहार से बेंगलुरु तक अलग-अलग जगहों से हैं. किसी ने जेल सुधार पर काम किया है तो किसी ने जलवायु परिवर्तन पर. कोई रूरल डिवेलपमेंट को बढ़ावा दे रहा है, तो कोई बुजुर्गों की देखभाल पर ध्यान दे रहा है.
गूगल यूथ एडवाइजर भी चुने गए हैं आदर्श कुमार
बिहार के चंपारण के आदर्श कुमार ने गरीबी और सुविधाओं की कमी के बीच सपने देखने नहीं छोड़े. 14 साल की उम्र में कोटा गए, जहां कोचिंग करने के बजाए पब्लिक लाइब्रेरी और फ्री वाई-फाई का इस्तेमाल करके खुद से पढ़ाई की. उन्होंने स्किलजो (Skillzo) नाम का एक प्लेटफॉर्म शुरू किया, जहां 19,500 से अधिक गरीब युवाओं को ट्रेनिंग दी जा चुकी है. उनका दूसरा प्रोजेक्ट मिशन बदलाव ग्रामीण इलाकों में वैक्सीन, पेड़ लगाने और स्कूलों तक पहुंच बनाने में मदद करता है. टेक्नोलॉजी को सरल और सुलभ बनाने के हिमायती आदर्श को गूगल यूथ एडवाइजर भी चुना गया है.
कैदियों की शिक्षा पर काम कर रहीं मन्नत समरा
17 साल की मन्नत समरा जेल सुधार और शरणार्थियों की शिक्षा पर काम कर रही हैं. उन्होंने 50,000 से अधिक कैदियों की मदद की, जिसमें ट्रेनिंग देना और पूर्व-कैदियों के लिए भारत का पहला जॉब पोर्टल शुरू करना शामिल है. उनका प्रोजेक्ट ब्रिज पूर्व कैदियों द्वारा चलाए जा रहे बिजनेस को सपोर्ट करता है. वह शरणार्थी छात्रों को भी पढ़ाती भी हैं, जिनमें से कुछ ने स्टैनफोर्ड जैसी यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया है.
ग्रामीण महिलाओं को शिक्षा से जोड़ते हैं शिवांश गुप्ता
हरियाणा के शिवांश गुप्ता ने जेंडर इकोनॉमिक्स पर रिसर्च की है. उन्होंने सरकार के साथ मिलकर 40,000 से अधिक ग्रामीण महिलाओं को फाइनेंशियल लिटरेसी की ट्रेनिंग दी है. उनका नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन द टीन डिबेटर 10,000 से अधिक छात्रों को डिबेट और क्रिटिकल थिंकिंग सिखा चुका है. उनकी पार्किनस्टेप डिवाइस पार्किंसंस बीमारी के मरीजों को सुरक्षित चलने में मदद करता है.
बुजुर्गों को डिजिटली स्ट्रॉन्ग बना रहे धीरज गतमाने
दादरा और नगर हवेली के आदिवासी इलाकों में पले-बढ़े धीरज गतमाने बुजुर्गों के लिए काम करते हैं. उनका सेकंड सनराइज नाम का आंदोलन 20 से ज्यादा देशों में 35 लाख से अधिक बुजुर्गों तक पहुंच चुका है. उनके संगठन ने 350 ईकोफ्रेंडली घर बनाए हैं. 1.2 लाख हेल्थ चेकअप किए हैं और 1.5 लाख बुजुर्गों को डिजिटली स्ट्रॉन्ग बनाया है.
एचआईवी पॉजिटिव बच्चों को स्किल सिखा रहीं जहां अरोड़ा
जहां अरोड़ा ने शुरुआत में 40 HIV+ बच्चों को खाना खिलाने के लिए पैसे जुटाए थे. आज उनका प्रोजेक्ट 1 मिलियन मील्स, 9.5 लाख से अधिक लोगों को खाना खिला चुका है. उन्होंने
नाम का एक प्लेटफॉर्म भी बनाया है, जहां छात्र अपनी वॉलंटियरिंग के बदले में मेंटरशिप और नई स्किल सीख सकते हैं. इससे 5 देशों के 11,900 बच्चे जुड़ चुके हैं. इसके अलावा पर्यावरण से जुड़ा प्रोजेक्ट ट्रैश माफिया किड्स 20 टन से अधिक कचरे को लैंडफिल में जाने से रोक चुका है.ये भी पढ़ें: आईआईटी दिल्ली से पासआउट हुए 2764 छात्र, 63 साल के गोपाल कृष्ण को मिली PhD की डिग्री