टीनएजर्स का रात-रात भर जागना कोई नई बात नहीं है, दुनिया में हुई कई रिसर्च में ये सामने आया है कि किशोर पहले से कहीं ज्यादा कदम नींद ले रहे हैं. उन्हें मानसिक संकट और अन्य समस्याओं से बचाने के लिए एक अनोखी पहल की गई है.ये हुआ है अमेरिका के ओहियो में जहां टीनएजर्स को नींद की ट्रेनिंग दी जा रही है, ताकि उन्हें रात में अच्छी नींद आए.
मैन्सफील्ड सीनियर हाईस्कूल में इसे सिलेबस में शामिल किया गया है. यह अपने तरह का पहला ऐसा मामला है जब दुनिया के किसी स्कूल ने इस तरह का कदम उठाया है.इसमें किशोरों को सिखाया जा रहा है कि वह किस तरह से अच्छी नींद लें.मैन्सफील्ड स्कूल के हेल्थ टीचर के मुताबिक इस कोर्स को शुरू करने का ख्याल उन्हें तब आया जब उन्होंने देखा कि क्लास के दौरान ही कई टीनएजर्स किशोर अपनी बेंच पर बैठे-बैठे सो रहे हैं.
बच्चे सोना नहीं जानते
मैन्सफील्ड स्वास्थ्य शिक्षक टोनी डेविस ने कहा कि नींद की ट्रेनिंग को सिलेबस में शामिल करने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि बच्चों को सोने का तरीका ही नहीं पता.उनकी बात का समर्थन करते हुए स्टैनफोर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ एजुकेशन की डेनिस पोप कहती हैं कि अमेरिका के किसी भी स्कूल में चले जाइए, वहां आपको बच्चे सोते नजर आएंगे, चाहे क्लास के दौरान या बाहर जमीन या बेंच पर, क्योंकि वे थके हुए होते हैं. उन्होंने पिछले दस साल से हाईस्कूल के छात्रों पर एक सर्वेक्षण किया और बताया कि नींद कैसे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी हुई है.
किशोरों के लिए कितनी नींद जरूरी?
यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार तकरीबन 80 प्रतिशत किशोरों को कम नींद मिलती है.रिपोर्ट के मुताबिक टीनएनर्ज को अपने विकसित होते माइंड के लिए हर रात आठ से 10 घंटे की नींद की आवश्यकता होती है, जबकि 2007 से किशोरों की नींद में लगातार गिरावट देखी जा रही है, आजकल किशोरों की एवरेज स्लीपिंग हैबिट 6 घंटे की है.इससे किशोरों में अवसाद, चिंता, आत्महत्या जैसे विचार आ रहे हैं. AP की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकल मेडिकल एसोसिएशन की सिफारिश पर अमेरिका में स्कूलों के खुलने का समय बदल दिया गया है.
स्लीप टू बी ए बेटर यू
यही कारण है कि ओहियो के मैन्सफील्ड स्कूल में में 3 हजार छात्रों को स्लीप टू बी ए बेटर यू कार्यक्रम के बारे में बताया जा रहा है.स्कूल को उम्मीद है कि इससे छात्रों की शैक्षिक स्थिति में सुधार होगा और उनकी लगातार अनुपस्थिति भी कम होगी. मैन्सफील्ड स्वास्थ्य शिक्षक टोनी डेविस के मुताबिक एक सर्वे में पाया गया कि 60 प्रतिशत छात्र अपने फोन को अलार्म वॉच की तरह इस्तेमाल करते हैं, जबकि 50 प्रतिशत फोन देखते हुए ही सो जाते हैं. विशेषज्ञों ने माता पिता से अपील की है कि वे बच्चे के बेडरूम से फोन हटा दें.