उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के शादियाबाद इलाके का खुटवा गांव इन दिनों खुशियों से सराबोर है. वजह हैं अनुपम यादव, जिन्होंने UPSC सिविल सेवा परीक्षा 2024 में 237वीं रैंक हासिल की है. अनुपम का यह सफर इसलिए भी खास है क्योंकि वह एक पुलिस ड्राइवर के बेटे हैं और आज उनके नाम से पूरा जिला गर्व कर रहा है.
अनुपम यादव के पिता बुधीराम यादव मऊ जिले के रहने वाले हैं और साल 2000 से 2012 तक गाजीपुर में पुलिस जीप चलाने का काम करते रहे. इसी दौरान उन्होंने शादियाबाद क्षेत्र के खुटवा गांव में अपना घर बना लिया और वहीं बस गए. भले ही उन्होंने पुलिस की गाड़ी चलाई हो, लेकिन उनका सपना था कि उनका बेटा किसी ऊंचे पद पर पहुंचे. बेटे ने उनकी इस उम्मीद को साकार कर दिखाया.
शिक्षा को सबसे बड़ा धन मानने वाला परिवार
अनुपम यादव पांच भाई और दो बहनों के परिवार से हैं. उनके पिता ने हमेशा शिक्षा को सबसे बड़ा धन माना और अपने सभी बच्चों को पढ़ाया-लिखाया. अनुपम ने अपनी शुरुआती पढ़ाई गाजीपुर के तूलिका पब्लिक स्कूल से की, इंटरमीडिएट शाह फैज पब्लिक स्कूल से किया. इसके बाद इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएट और जेएनयू से हायर एजुकेशन की. उन्होंने अपनी पीएचडी सेंट्रल यूनिवर्सिटी कर्नाटक से पूरी की.
नौकरी के साथ भी जारी रही तैयारी
अनुपम तमिलनाडु की सेंट्रल यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत थे, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने यूपीएससी की तैयारी जारी रखी. तीन बार वे इंटरव्यू तक पहुंचे लेकिन सफलता नहीं मिली. हार मानने के बजाय उन्होंने चौथे प्रयास की ठान ली. इस बार उन्होंने न सिर्फ परीक्षा दी, बल्कि 237वीं रैंक के साथ टॉपर्स की सूची में भी अपना नाम दर्ज करवा लिया.
परिवार और गांव में जश्न का माहौल
रिजल्ट आने के बाद अनुपम यादव के घर और गांव में खुशी की लहर दौड़ गई. परिवार के लोगों ने बताया कि जब वह तीन बार इंटरव्यू तक पहुंचकर सफल नहीं हो पाए थे, तब उन्होंने प्रोफेसर की नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से यूपीएससी की तैयारी में लग गए. उनकी मेहनत ने अब रंग ला दिया.
सपनों को सच करने की मिसाल
अनुपम की दो बहनें बिहार में स्कूल टीचर हैं, एक छोटा भाई राजस्थान में केमिकल इंजीनियर है. उनके पिता वर्तमान में 36वीं पीएसी वाहिनी रामनगर, वाराणसी में मुख्य आरक्षी परिवहन के पद पर कार्यरत हैं. उनकी मां सुशीला देवी एक हाउस वाइफ हैं. इस समय उनका घर बंद है क्योंकि परिवार के सभी सदस्य अपने-अपने काम के सिलसिले में बाहर हैं.
ग्रामीणों के अनुसार वे जल्द ही गांव लौटने वाले हैं. अनुपम यादव की कहानी इस बात की मिसाल है कि यदि हिम्मत और मेहनत साथ हो, तो कोई भी मंजिल मुश्किल नहीं होती.
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