पहलगाम के दोषी आतंकियों को चुन-चुनकर मारेंगे गरुड़ कमांडो, जानिए कैसे होता है इस एलीट फोर्स में चयन

पहलगाम आतंकी हमले के दोषियों को खोजबीज जारी है. भारतीय सेना की कई यूनिटों के साथ पैरा मिलिट्री फोर्स, मार्कोस और गरुड़ कमांडो फोर्स ग्राउंड जीरो पर सर्च ऑपरेशन में लगी हैं. इनमें सबसे खास गरुड़ कमांडो फोर्स है जिसे आतंकियों को ढूंढकर मारने में महारत हासिल है. पहलगाम की जिस घाटी में आतंकियों ने कायराना हरकत की, उसके जंगलों में गरुड़ कमांडो फोर्स के जवान डेरा डाले हुए हैं.

गरुड़ कमांडो भारतीय वायुसेना की स्पेशल कमांडो फोर्स है, जिसका गठन 2004 में हुआ था. इसका नाम पुराणों में वर्णित दिव्य पक्षी गरुड़ के नाम पर रखा गया है. यह भारत की स्पेशल फोर्सेस में सबसे एलीट मानी जाती है जो किसी भी तरह की सिचुएशन को हैंडल करने में सक्षम है. खासतौर से इन्हें काउंटर टेरिरिज्म में महारत हासिल है. पठानकोठ एयरबेस के बाद जम्मू कश्मीर में भी कई कमांडो यूनिट की तैनाती की गई है. जो समय-समय पर आतंकियों को मात देते हैं.

कैसे बनते हैं गरुड़ कमांडो

भारत की स्पेशल फोर्स में सबसे नई फोर्स गरुड़ कमांडो है, एयरफोर्स ने 2003 में इसके गठन का डिसीजन लिया था, इससे पहले एयरफोर्स अपने स्पेशल ऑपरेशन के लिए भारतीय सेना की पैरा मिलिट्री फोर्स पर निर्भर थी. 2004 में जब इनका गठन हुआ था पहले 1080 जवान रखे गए थे, बाद में इनकी संख्या बढ़ा दी गई. इन कमांडो का चयन दो तरीकों से होता है, नॉन कमीशन और कमीशन पोस्टों के लिए चयन की अलग-अलग प्रक्रिया है.

कैसे होता है चयन

गरुड़ कमांडो फोर्स की नॉन कमीशन पोस्ट के लिए डायरेक्ट एयरमैन सिलेक्शन सेंटर के थ्रू चयन होता है. खास बात ये है कि इसमें सिलेक्शन का सेकेंड चांस नहीं मिलता.सिलेक्शन के बाद और ट्रेनिंग और ड्रिल के दौरान भी यहां ग्रेड मेंटेन करना होता है. सर्विस ड्यूरेशन के दौरान यह जवान कमांडो फोर्स में ही रहते हैं. इसके अलावा कमीशन पोस्ट के लिए एयरफोर्स एकेडमी के ग्राउंड ड्यूटी कोर्स के कैडेट्स को रिक्रूट किया जाता है.इन्हें जीओडीसी एग्जाम क्लीयर करना होता है.इसे पास करने वाले जवानों को गरुड़ कमांडो फोर्स में मर्ज कर दिया जाता है.

ऐसे होती है ट्रेनिंग

गरुड़ कमांडो फोर्स के लिए चयनित जवानों की ट्रेनिंग गरुड़ रेजीमेंट ट्रेनिंग सेंटर हिंडन में होती है. इसके बाद इन्हें स्पेशल ग्रुप द्वारा ट्रेनिंग दी जाती है.इसमें आर्मी के अलावा NSG कमांडो, पैरा मिलिट्री के जवान और स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के मेंबर होते हैं.इनकी ट्रेनिंग की तीसरा चरण पैराशूट ट्रेनिंग सेंटर होता है, जहां से इन्हें हवा से छलांग लगाने के बारे में सिखाया जाता है. इसके बाद डाइविंग स्कूल ऑफ नेवी में ट्रेनिंग होती है.इसके बाद कुछ समय के लिए इहें जंगल वॉरफेयर स्कूल ऑफ आर्मी में भी भेजा जाता है.

हवा-जमीन पानी हर जगह अव्वल

यानी चाहे हवा हो, पानी हो या जमीन, ये हर जगह लड़ने में सक्षम होते हैं.आखिर में इहें आर्मी की स्पेशल फोर्स के साथ ट्रेनिंग के लिए रखा जाता है.खास बात ये है कि भारतीय स्पेशल फोर्सेज में गरुड़ कमांडो की ट्रेनिंग सबसे लंबी यानी तकरीबन 72 सप्ताह की होती है, जिसे कई बार पूरा करने में तीन साल तक का समय लग जाता है.

यूपी बोर्ड हाईस्कूल का रिजल्ट यहां देखें