सुप्रीम कोर्ट जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने ने मंगलवार को लॉ की पढ़ाई और लॉ एजुकेशन के रेगुलेशन को लेकर बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) की ट्रेडिशनल रोल पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं.
पीठ ने कहा कि देश के लॉ कॉलेजों और यूनिवर्सिटियों में दी जाने वाली लॉ एजुकेशन को एक्सपर्ट्स और अकैडमिक्स द्वारा कंट्रोल किया जाना चाहिए, न कि केवल वकीलों की सुप्रीम बॉडी BCI के माध्यम से. कोर्ट का यह रुख इस बात को दर्शाता है कि अब लॉ एजुकेशन में एकेडमिक क्वालिटी और मॉडर्न जरूरतों के अनुसार बदलाव महसूस की जा रही है.
सरकार और यूजीसी से मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल गवर्नमेंट और यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) को निर्देश दिया है कि वे इस मुद्दे पर अलग-अलग अफिडेविट दाखिल करें और यह स्पष्ट करें कि क्या BCI को अभी भी लॉ एजुकेशन पर पूरा नियंत्रण मिलना चाहिए या यह जिम्मेदारी अकाडमिक्स को सौंपी जानी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि यह एक पॉलिसी और लॉन्ग टर्म का विषय है, जिस पर ट्रांसपेरेंट सोच विचार जरूरी है.
पूर्व CJI की अध्यक्षता में बनेगी कमिटी
BCI की ओर से सीनियर काउंसेल विवेक तन्खा ने अदालत को सूचित किया कि काउंसिल इस मुद्दे पर विचार के लिए एक हाई लेवल कमिटी बनाने के पक्ष में है, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के फॉर्मर चीफ जस्टिस (CJI) करेंगे. इस कमिटी में लीगल एजुकेशन, अकैडमिक रिफॉर्म्स और करिकुलम को लेकर एक्सपर्ट्स को शामिल किया जाएगा, जो यह तय करेंगे कि BCI की भूमिका कितनी सीमित या विस्तृत होनी चाहिए.
सीनियर काउंसेल एएम सिंघवी ने इस सुझाव का समर्थन करते हुए कहा कि यह लॉ एजुकेशन की क्वालिटी सुधारने की दिशा में एक पॉजिटिव स्टेप हो सकता है.
लॉ एजुकेशन में क्वालिटी और मॉडर्निटी की मांग
बीते कुछ वर्षों में लॉ एजुकेशन में क्वालिटी की गिरावट और कोर्स को लेकर चिंता जताई जाती रही है. आज की बदलती दुनिया में केवल ट्रेडिशनल लॉ की पढ़ाई ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि स्टूडेंटों को टेक्नोलॉजी, साइबर लॉ, इंटरनेशनल लॉ और ज्यूडिशियल प्रोसेस की गहराई से जानकारी दी जानी चाहिए.
विशेषज्ञों का मानना है कि BCI को केवल वकीलों की एथिक्स, लाइसेंसिंग, और प्रोफेशनल कंडक्ट तक सीमित रहना चाहिए, जबकि एजुकेशन से जुड़े निर्णय यूनिवर्सिटियों और एक्सपर्ट इंस्टीट्यूशन्स को लेने चाहिए.
देशभर के लॉ स्टूडेंटों और इंस्टीट्यूशन्स पर असर
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी और प्रस्तावित कमिटी के गठन का असर पूरे देश के लॉ स्टूडेंटों, टीचरों और एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन्स पर पड़ेगा. अगर यह बदलाव होता है, तो लॉ की पढ़ाई में न्यू सिलेबस, मॉडर्न सब्जेक्ट और इंडस्ट्री से जुड़ी जरूरतों के मुताबिक ट्रेनिंग को शामिल किया जा सकता है, जिससे स्टूडेंटों को ग्लोबल स्तर पर कंपटीशन के लिए तैयार किया जा सकेगा.
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