दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) ने मनुस्मृति को लेकर एक अहम फैसला लिया है, जिसके तहत अब डीयू के किसी भी पाठ्यक्रम यानी कोर्स में मनुस्मृति नहीं पढ़ाई जाएगी. डीयू के कुलपति प्रो याेगेश सिंह ने खुद इस संबंध में जानकारी दी है. डीयू के कुलपति ने मनुस्मृति को लेकर ये फैसला तब लिया है, जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत स्नातक पाठ्यक्रम मेंमनुस्मृति को धर्मशास्त्र अध्ययन नामक फोर-क्रेडिट संस्कृत पाठ्यक्रम में सूचीबद्ध किया गया है.
मनुस्मृति को लेकर हो चुका है विवाद
डीयू में मनुस्मृति को लेकर पहले भी विवाद हो चुका है. बीते साल संस्कृत विभाग के एक पेपर में मनुस्मृति के उल्लेख को लेकर डीयू की आलोचना हुई थी. उस दौरान भी डीयू ने स्पष्ट किया था कि मनुस्मृति नहीं पढ़ाई जाएगी. इस संबंध में गुरुवार को कुलपति प्रो योगेश सिंह ने कहा कि इससे पहले भी डीयू प्रशासन ने कहा था कि मनुस्मृति को किसी भी पाठ्यक्रम में नहीं पढ़ाया जाएगा. तो वहीं पिछले साल भी प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया था कि इसे किसी भी रूप में नहीं पढ़ाया जाएगा.
मनुस्मृति का अलग से अध्याय तैयार करना होगा
मनुस्मृति को लेकर डीयू के कुलपति प्रो योगेश सिंह ने कहा कि संस्कृत विभाग ने ‘धर्मशास्त्र अध्ययन’ के तहत मनुस्मृति पर आधारित एक अध्याय का सुझाव दिया था, लेकिन अध्याय को हटा दिया गया है. प्रो सिंह ने कहा कि यदि विभाग मनुस्मृति पढ़ाना चाहता है, तो उसे इसका अध्याय अलग तरीके से तैयार करना होगा.
वहीं डीयू प्रशासन ने इस संबंध में अलग से बयान जारी कर कहा है कि डीयू अपने किसी भी पाठ्यक्रम में मनुस्मृति नहीं पढ़ाएगा. संस्कृत विभाग के डीएससी (अनुशासन विशिष्ट कोर) ‘धर्मशास्त्र अध्ययन’, जिसमें मनुस्मृति को ‘अनुशंसित पाठ्य सामग्री’ के रूप में उल्लेखित किया गया है, को हटा दिया गया है.
धर्मशास्त्र अध्ययन में क्या
डीयू संस्कृत विभाग के धर्मशास्त्र अध्ययन के पाठ्यक्रम में रामायण, महाभारत, पुराण और (कौटिल्य का) अर्थशास्त्र जैसे ग्रंथ भी शामिल हैं.हालांकि, जाति और महिलाओं पर अपने विचारों के लिए लंबे समय से विवादित रहे मनुस्मृति को पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने पर छात्रों और शिक्षकों दोनों ने ही विरोध जताया है. यह पहली बार नहीं है जब दिल्ली विश्वविद्यालय ने विवादास्पद धर्मग्रंथ के अध्यापन से खुद को अलग किया है.
पिछले साल जुलाई में, विश्वविद्यालय ने मनुस्मृति और बाबरनामा को इतिहास के पाठ्यक्रम में शामिल करने के प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि भविष्य में भी इस तरह के विषयों को शामिल नहीं किया जाएगा.
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